हर 15 साल पर बदलता है टेक्नोलॉजी ट्रेंड; स्मार्टफोन हुआ पुराना, अब इस डिवाइस का आएगा ज़माना!
देखा गया है कि टेक इंडस्ट्री का ट्रेंड हर 15 साल पर बदलता रहता है. शुरुआत में मेनफ्रेम आया, फिर पर्सनल कंप्यूटर, इसके बाद इंटरनेट की एंट्री हुई, , और फिर मोबाइल फोन आया और अब स्मार्टफोन्स का दौर है. ऐसे में सवाल ये है कि इसकी ‘अगली पीढ़ी क्या है?’ यानी कि स्मार्टफो
न के बाद क्या आएगा.
टेक्नोलॉजी का दौर तेज़ी से बदलता रहा है. अगर हमारे बचपन से लेकर अभी तक की बात करें तो हमने टेक्नोलॉजी से जुड़े कई बदलाव देखे हैं. बचपन से लेकर अब तक की बात करें तो रेडियो से लेकर स्मार्टफोन तक हमने लंबा सफर तय किया. आज स्मार्टफोन का आलम यह है कि दुनियाभर में लोगों की नज़र अपने फ्री वक्त में स्मार्टफोन्स पर ही गड़ी रहती है, जिसे भी देखा जाए, वह अपना ज़्यादातर फ्री टाइम स्मार्टफोन पर ही बिताता है. हालांकि ऐसा देखा गया है कि टेक इंडस्ट्री का ट्रेंड हर 15 साल पर बदल जाता है. जैसे कि शुरुआत में मेनफ्रेम आया, फिर उसके बाद हमने पर्सनल कंप्यूटर देखा. इसके बाद फिर इंटरनेट ने दस्तक दी और फिर मोबाइल फोन आए और अब फिर स्मार्टफोन्स का दौर तेज़ी पर देखा जा रहा है. आज भले ये पुराने मॉडल अपनी अहमियत खो चुके लगते हैं, लेकिन जब ये आए थे तो दुनिया में तहलका मचा दिया. प्रत्येक ने एक नया बाजार खोला जो इतना बड़ा था कि इसने निवेश, नवोन्मेष और कंपनी निर्माण को खींच लिया और इस तरह ये पुराने से आगे निकलते गए.
इस बीच पुराने मॉडल दूर नहीं गए. मेनफ्रेम अभी भी एक बड़ा व्यवसाय है और इसलिए IBM है, PC अभी भी एक बड़ा व्यवसाय है और इसलिए Microsoft है. लेकिन वे अब एजेंडा सेट नहीं करते हैं. अब उनको लेकर उस तरह की हलचल नहीं मचती. अब मल्टीटच स्मार्टफोन को भी आए 15 साल होने वाले हैं और ये S कर्व से बाहर हो रहा है. इसमें हर संभव तकनीक को समाहित किया गया है. Apple और Google ने हमें अपने नए प्रोडक्ट से हमेशा हैरानी में डाला है. हालांकि अब नए iPhone को देखें तो इसमें कोई बहुत रोमांचक चीज़ नहीं दिखती, क्योंकि अब ऐसा लग रहा है कि यह ठहराव की स्थिति में पहुंच गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि ‘अगली पीढ़ी क्या होगी?’ यानी कि स्मार्टफोन के बाद क्या आएगा
VR, AR या दोनों हो सकते हैं फ्यूचर डिवाइस?
दुनिया के पॉपुलर टेक्नोलॉजी के पत्रकार Benedict Evans ने अपने ब्लॉग पोस्ट में इस बात की जानकारी दी है. इवांस का कहना है कि डिवाइस मॉडल जो शायद स्मार्टफोन को बदल सकता है, वह VR, या AR या दोनों हैं. ये स्मार्टफोन से ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच सकते, लेकिन वे फिर भी एक्सपीरिएंस की जगह ज़रूर ले सकते हैं. हमारे पास VR डिवाइस हैं जो गेम और कुछ बेहद सूक्ष्म औद्योगिक उपयोग के लिए अच्छे हैं. ऐसी उम्मीद है कि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर यूनिवर्सली बढ़ सकते हैं. लेकिन ये अभी तक स्पष्ट नहीं है कि हार्डवेयर रोडमैप का पालन करने के लिए यह सब आवश्यक है, या VR को गेम कंसोल उद्योग के गहरे और संकरे हिस्से से अधिक होने के लिए कुछ मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है.
दूसरी तरफ AR glasses की बात करें तो ये इसमें अभी बहुत सी संभावनाएं दिखती हैं. क्या हम ऑप्टिक्स बना सकते हैं जो पढ़ने वाले चश्मे की तरह दिखते हैं. इस चश्मा को पहनने पर ऐसा लगे मानों आखों के आगे दिख रही दुनिया ही बिल्कुल वास्तव में है. ऐसा कुछ अगर हम VR के लिए कर सकते हैं तो ये जादुई हो सकता है, लेकिन ये कितने काम का है? आज इस VR को देखना 2005 में एक मल्टीटच डेमो देखने जैसा है. ये स्पष्ट रूप से कुछ चीज़ों के लिए अच्छा है, लेकिन किस के लिए?
हालांकि ये सब अगले कदम के बारे में सोचने के लिए गलत मानसिक मॉडल हो सकता है. साथ ही ये सीक्वेंस देखने पर-‘Mainframe - PC - web - smartphone’, हमें शायद ये भी सोचना चाहिए कि इन सबके पीछे क्या चल रहा था, यानी कि ‘database - client/server - open source - cloud’. ये ऐसी प्रगति है जिसका हमेशा यूं तो एहसास नहीं होता लेकिन उतनी ही महत्वपूर्ण हैं. ये बहुत स्पष्ट है कि हम मशीन लर्निंग के आसपास के तकनीकी उद्योग का रीमेक बना रहे हैं, और शायद बहुत से और भी उद्योगों के साथ भी ऐसा ही किया रहा है. शायद यही वजह है कि तो स्मार्टफोन के बाद जल्द ही कुछ और सामने आए. ऐसा नहीं लगता कि मशीन लर्निंग के बाद कुछ भी नहीं आएगा, क्योंकि नवाचार और निर्माण की एक सतत प्रक्रिया है. हालांकि ये सारी चीज़ें सभावनाओं पर बेस्ड है, ऐसा ज़रूरी नहीं है कि आने वाला कल ऐसा ही हो.